शनि देव को सूर्य पुत्र एवं कर्म फल दाता माना जाता है। शनि दोष निवारण पूजा शनि की साढ़ेसाती और ढैया के प्रकोप एवं पाप कर्मो से मुक्ति पाकर जीवन में सुख समृद्धि और यश कीर्ति प्राप्त हो इसलिए की जाती है। कुंडली में शनिग्रह से अशुभ फल मिल रहे हो तो शनिदेव को प्रसन्न करने के लिए और मनुष्य को शुभ फल प्रदान करे इसलिए की जाती है।
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सूर्य पुत्र शनि को सन्तुलन और न्याय का ग्रह माना गया है,साथ ही वह पितृ शत्रु एवं अशुभ मार्ग और दुख का कारक माना जाता है। शनि मकर तथा कुम्भ राशि का स्वामी है।यह तुला राशि में उच्च का और मेष राशि में नीच का होता है। अनुराधा नक्षत्र का स्वामी हैं। शनि की मणि नीलम है। इसकी धातु लोहा, अनाज चना, और दालों में उडद की दाल मानी जाती है। शरीर में इस ग्रह का स्थान उदर और जंघाओं में है। सूर्य पुत्र शनि दुख दायक, शूद्र वर्ण, तामस प्रकृति, वात प्रकृति प्रधान तथा भाग्य हीन नीरस वस्तुओं पर अधिकार रखता है।
शनि सीमा ग्रह कहलाता है, क्योंकि जहां पर सूर्य की सीमा समाप्त होती है, वहीं से शनि की सीमा शुरु हो जाती है। जगत में सच्चे और झूठे का भेद समझना, शनि का विशेष गुण है। यह ग्रह कष्टकारक तथा दुर्दैव लाने वाला है।यदि किसी व्यक्ति पर शनि ग्रह की साढ़ेसाती या ढैय्या चल रही हो तो शनि दोष निवारण पूजा बहुत फलदायी है ।
शनिवार के दिन पीपल पर जल चढ़ाया जाता है तथा सरसों के तेल का दीपक जलाया जाता है। ऐसा करने से शनि दोष के प्रभाव कम होतें है।
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